अपनी सुधि भूल आप, आप दुख उपायौ
From जैनकोष
अपनी सुधि भूल आप, आप दुख उपायौ,
ज्यौं शुक नभचाल विसरि नलिनी लटकायो ।।अपनी. ।।
चेतन अविरुद्ध शुद्ध, दरश बोधमय विशुद्ध ।
तजि जड़-रस-फरस रूप, पुद्गल अपनायौ।।१ ।।अपनी. ।।
इन्द्रियसुख दुख में नित्त, पाग राग रुख में चित्त ।
दायकभव विपति वृन्द, बन्धको बढ़ायौ।।२ ।।अपनी. ।।
चाह दाह दाहै, त्यागौ न ताहि चाहै ।
समतासुधा न गाहै जिन, निकट जो बतायौ।।३ ।।अपनी. ।।
मानुषभव सुकुल पाय, जिनवर शासन लहाय ।
`दौल' निजस्वभाव भज, अनादि जो न ध्यायौ।।४ ।।अपनी. ।।