कहा मानले ओ मेरे भैया
From जैनकोष
कहा मानले ओ मेरे भैया, भव भव डुलने में क्या सार है ।
तू बनजा बने तो परमात्मा, तेरी आत्मा की शक्ति अपार है ।।
भोग बुरे हैं त्याग सजन ये, विपद करें और नरक धरें ।
ध्यान ही है एक नाव सजन जो, इधर तिरें और उधर वरें ।
झूँठी प्रीति में तेरी ही हार है, वाणी गणधर की ये हितकार है ।।१ ।।
लोभ पाप का बाप सजन क्यों राग करे दु:खभार भरे ।
ज्ञान कसौटी परख सजन मत छलियों का विश्वास करे ।।
ठग आठों की यहाँ भरमार है, इन्हें जीते तो बेड़ा पार है ।।२ ।।
नरतन का `सौभाग्य' सजन ये हाथ लगे ना हाथ लगे ।
कर आतमरस पान सजन जो जनम भगे और मरण भगे ।।
मोक्ष महल का ये ही द्वार है, वीतरागी हो बनना सार है ।।३ ।।