ग्रन्थ:पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 131 - समय-व्याख्या
From जैनकोष
जम्हा कम्मस्स फलं विसयं फासेहिं भुंजदे णियदं । (131)
जीवेण सुहं दुक्खं तम्हा कम्माणि मुत्ताणि ॥141॥
अर्थ:
क्योंकि कर्म का फल विषय नियम से स्पर्शनादि इन्द्रियों द्वारा सुख-दु:ख रूप में जीव भोगता है, इसलिए कर्म मूर्त है ।
समय-व्याख्या:
मूर्तकर्मसमर्थनमेतत् ।
यतो हि कर्मणां फलभूतः सुखदुःखहेतुविषयो मूर्तो मूर्तैरिन्द्रियैर्जीवेन नियतंभुज्यते, ततः कर्मणां मूर्तत्वमनुमीयते । तथाहि - मूर्तं कर्म, मूर्तसम्बम्धेनानुभूयमानमूर्त-फलत्वादाखुविषवदिति ॥१३१॥
समय-व्याख्या हिंदी :
यह, मूर्त कर्म का समर्थन है ।
कर्म का फ़ल जो सुख-दुःख के हेतु-भूत मूर्त विषय वे नियम से मूर्त इन्द्रियों द्वारा जीव से भोगे जाते हैं, इसलिये कर्म के मूर्त-पने का अनुमान हो सकता है । वह इस प्रकार -- जिस प्रकार १मूषक-विष मूर्त है उसी प्रकार कर्म मूर्त है, क्योंकि (मूषक-विष के फ़ल की भाँति) मूर्त के सम्बन्ध द्वारा अनुभव में आने वाला ऐसा मूर्त उसका फ़ल है ॥१३१॥
१चूहे के विष का फ़ल -- शरीर में सूजन आना, बुखार आना आदि -- मूर्त है और मूर्त शरीर के सम्बन्ध द्वारा अनुभव में आता है -- भोगा जाता है, इसलिये अनुमान हो सकता है कि चूहे का विष मूर्त है, उसी प्रकार कर्म का फ़ल / विषय मूर्त है और मूर्त इन्द्रियों के सम्बन्ध द्वारा अनुभव में आता है -- भोगा जाता है, इसलिये अनुमान हो सकता है कि कर्म मूर्त है।