ग्रन्थ:पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 13 - समय-व्याख्या
From जैनकोष
दव्वेण विणा ण गुणा गुणेहिं दव्वं विणा ण संभवदि ।
अव्वदिरित्तो भावो दव्वगुणाणं हवदि तम्हा ॥13॥
अर्थ:
द्रव्य के बिना गुण नहीं हैं, गुणों के बिना द्रव्य संभव नहीं है; इसलिये द्रव्य और गुणों के अव्यतिरिक्त / अभिन्न भाव है।
समय-व्याख्या:
अत्र द्रव्यगुणानामभेदो निर्दिष्ट: । पुद्गलपृथग्भूतस्पर्शरसगन्धवर्णवद᳭द्रव्येण विना न गुणा: संभवन्ति । स्पर्शरसगंधवर्णपृथग्भूतपदु्गलवद᳭गुणैर्विना द्रव्यं न संभवति । ततो द्रव्यगुणानामप्यादेशवशात् कथंचिद᳭भेदेऽप्येकास्तित्वनियतत्वादन्योन्याजहद᳭वृत्तीनां वस्तुत्वेनाभेद इति ॥१३॥
समय-व्याख्या हिंदी :
यहाँ द्रव्य और गुणों का अभेद दर्शाया है ।
जिस प्रकार पुद्गल से पृथक स्पर्श-रस-गंध-वर्ण नहीं होते उसी प्रकार द्रव्य के बिना गुण नहीं होते; जिस प्रकार स्पर्श-रस-गंध-वर्ण से पृथक पुद्गल नहीं होता उसी प्रकार गुणों के बिना द्रव्य नहीं होता । इसलिए, द्रव्य और गुणों का आदेशवशात् (कथन के वश) कथंचित भेद है तथापि, वे एक अस्तित्व में नियत (दृढ़-रूप से स्थित) होने के कारण अन्योन्य-वृत्ति नहीं छोड़ते -- इसलिए वस्तु-रूप से उनमें अभेद है (अर्थात द्रव्य और पर्यायों की भाँति द्रव्य और गुणों का भी वस्तुरूप से अभेद है) ॥१३॥