ग्रन्थ:पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 75.1 - तात्पर्य-वृत्ति
From जैनकोष
पुढवी जलं च छाया चउरिंदियविसयकम्मपाओग्गा ।
कम्मातीदा एवं छ्ब्भेया पोग्गला होंती ॥83॥
अर्थ:
पृथ्वी,जल, छाया, (चक्षु इन्द्रिय को छाे़डकर शेष) चार इन्द्रिय के विषय, कर्म प्रायोग्य और कर्मातीत-इसप्रकार पुद्गल के छह भेद हैं।
तात्पर्य-वृत्ति हिंदी :
पृथ्वी, जल और छाया, चक्षु इन्द्रिय के विषय को छोडकर चार इन्द्रिय के विषय, कर्म प्रायोग्य और कर्मातीत -- इसप्रकार पुद्गल छह प्रकार के होते हैं । वे किस प्रकार से हैं ? वे स्थूल-स्थूल, स्थूल, स्थूल-सूक्ष्म, सूक्ष्म-स्थूल, सूक्ष्म, सूक्ष्म-सूक्ष्म हैं ।
वह इसप्रकार --
- भूमि, पर्वत आदि जो छिन्न / विभक्त होने पर स्वयं ही मिलने में असमर्थ हैं, वे स्थूल-स्थूल हैं ।
- घी, तेल, पानी आदि जो छिन्न / विभक्त होने पर भी उसी क्षण मिलने में स्वयं ही समर्थ हैं, वे स्थूल हैं ।
- छाया, आतप / धूप आदि जो हाथ से ग्रहण कर दूसरे स्थान पर ले जाने अशक्य हैं, वे स्थूल-सूक्ष्म हैं ।
- चार इन्द्रिय के विषय जो नेत्र के विषय नहीं हैं, वे सूक्ष्म-स्थूल हैं ।
- इन्द्रिय ज्ञान के विषय नहीं बनने वाले जो ज्ञानावरणादि कर्म वर्गणा के योग्य हैं, वे सूक्ष्म हैं;
- और कर्म-वर्गणा के अयोग्य अत्यन्त सूक्ष्म द्वयणुक-स्कन्ध पर्यन्त जो अत्यन्त सूक्ष्म होने से कर्म-वर्गणा से अतीत हैं, वे सूक्ष्म-सूक्ष्म हैं,
इसप्रकार प्रथम स्थल में स्कन्ध व्याख्यान की मुख्यता से चार गाथायें पूर्ण हुईं ।
तत्पश्चात् परमाणु व्याख्यान की मुख्यता से द्वितीय स्थल में पाँच गाथायें कहते हैं, वे इसप्रकार --