ग्रन्थ:प्रवचनसार - गाथा 148 - तत्त्व-प्रदीपिका
From जैनकोष
जीवो पाणणिबद्धो बद्धो मोहादिएहिं कम्मेहिं । (148)
उवभुंजं कम्मफलं बज्झदि अण्णेहिं कम्मेहिं ॥160॥
अर्थ:
[मोहादिकै: कर्मभि:] मोहादिक कर्मों से [बद्ध:] बँधा हुआ होने से [जीव:] जीव [प्राणनिबद्ध:] प्राणों से संयुक्त होता हुआ [कर्मफलं उपभुजानः] कर्मफल को भोगता हुआ [अन्यै: कर्मभि:] अन्य कर्मों से [बध्यते] बँधता है ।
तत्त्व-प्रदीपिका:
अथ प्राणानां पौद्गलिकत्वं साधयति -
यतो मोहादिभि: पौद्गलिककर्मभिर्बद्धत्वाज्जीव: प्राणनिबद्धो भवति, यतश्च प्राणनिबद्धत्वात्पौद्गलिककर्मफलमुपभुञ्जान: पुनरप्यन्यै: पौद्गलिककर्मभिर्बध्यते, तत: पौद्गलिककर्मकार्यत्वात्पौद्गलिककर्मकारणत्वाच्च पौद्गलिका एव प्राणा निश्चियन्ते ॥१४८॥
तत्त्व-प्रदीपिका हिंदी :
- मोहादिक पौद्गलिक कर्मों से बँधा हुआ होने से जीव प्राणों से संयुक्त होता है और
- प्राणों से संयुक्त होने के कारण पौद्गलिक कर्मफल को (मोही-रागी-द्वेषी जीव मोह-राग-द्वेषपूर्वक) भोगता हुआ पुन: भी अन्य पौद्गलिक कर्मों से बंधता है,
- पौद्गलिक कर्म के कार्य होने से और
- पौद्गलिक कर्म के कारण होने से