ग्रन्थ:सर्वार्थसिद्धि - अधिकार 2 - सूत्र 13
From जैनकोष
285. एकेन्द्रियाणामतिबहुवक्तव्याभावादुल्लङ्घ्यानुपूर्वी स्थावरभेदप्रतिपत्त्यर्थमाह -
285. एकेन्द्रियोंके विषयमें अधिक वक्तव्य नहीं है, इसलिए आनुपूर्वीको छोडकर पहले स्थावरके भेदोंका ज्ञान करानेके लिए आगेका सूत्र कहते हैं –
पृथिव्यप्तेजोवायुवनस्पतय: स्थावरा:।।13।।
पृथिवीकायिक, जलकायिक, अग्निकायिक, वायुकायिक और वनस्पतिकायिक ये पाँच स्थावर हैं।।13।।
286. स्थावरनामकर्मभेदा: पृथिवीकायादय: सन्ति। तदुदयनिमित्ता[1] जीवेषु पृथिव्यादय: संज्ञा वेदितव्या:। प्रथनादिप्रकृतिनिष्पन्ना अपि रुढिवशात्प्रथनाद्यनपेक्षा वर्तन्ते। एषां पृथिव्यादीनामार्थे चातुर्विध्यमुक्तं प्रत्येकम्। तत्कथमिति चेत् ? उच्यते – पृथिवी पृथिवीकाय: पृथिवीकायिक: पृथिवीजीव इत्यादि। तत्र अचेतना वैश्रसिकपरिणामनिर्वृत्ता काठिन्यगुणात्मिका पृथिवी। अचेतनत्वादसत्यपि पृथिवीकायनामकर्मोदये प्रथनक्रियोपलक्षितैवेयम्। अथवा पृथिवीति सामान्यम्; उत्तरत्रयेऽपि सद्भावत्। काय: शरीरम्। पृथिवीकायिकजीवपरित्यक्त: पृथिवीकायो मृतमनुष्यादिकायवत्। पृथिवीकायोऽस्यास्तीति पृथिवीकायिक:। तत्कायंबन्धवशीकृत आत्मा। समवाप्तपृथिवीकायनामकर्मोदय: कार्मणकाययोगस्थो यो न तात्पृथिवीं कायत्वेन गृह्णाति स पृथिवीजीव:[2]। एवमबादिष्वपि योज्यम्। ऐते मञ्चविधा: प्राणिन: स्थावरा:। कति पुनरेषां प्राणा: ? चत्वार: - स्पर्शनेन्द्रियपा्रण: कायबलप्राण: उच्छवासनिश्वासप्राण: आयु:प्राणश्चेति।
286. पृथिवीकाय आदि स्थावर नामकर्मके भेद हैं। उनके उदयके निमित्तसे जीवोंके पृथिवी आदिक नाम जानने चाहिए। यद्यपि ये नाम प्रथन आदि धातुओंसे बने हैं तो भी ये रौढिक हैं, इसलिए इनमें प्रथन आदि धर्मोंकी अपेक्षा नहीं है। शंका – आर्षमें ये पृथिवी आदिक अलग-अलग चार प्रकारके कहे हैं सो ये चार-चार भेद किस प्रकार प्राप्त होते हैं ? समाधान – पृथिवी, पृथिवीकाय, पृथिवीकायिक और पृथिवीजीव ये पृथिवीके चार भेद हैं। इनमें-से जो अचेतन है, प्राकृतिक परिणमनोंसे बनी है और कठिन गुणवाली है वह पृथिवी है। अचेतन होनेसे यद्यपि इसमें पृथिवी नामकर्मका उदय नहीं है तो भी प्रथनक्रियासे उपलक्षित होनेके कारण अर्थात् विस्तार आदि गुणवाली होनेके कारण यह पृथिवी कहलाती है। अथवा पृथिवी यह सामान्य वाची संज्ञा है, क्योंकि आगेके तीन भेदोंमें भी यह पायी जाती है। कायका अर्थ शरीर है, अत:पृथिवीकायिक जीव द्वारा जो शरीर छोड़ दिया जाता है वह पृथिवीकाय कहलाता है। यथा मरे हुए मनुष्य आदिकका शरीर। जिस जीवके पृथिवीरूप काय विद्यमान है उसे पृथिवीकायिक कहते हैं। तात्पर्य यह है कि जीव पृथिवीरूप शरीरके सम्बन्धसे युक्त है। कार्मणकाययोगमें स्थित जिस जीवने जबतक पृथिवीको कायरूपसे ग्रहण नहीं किया है तबतक वह पृथिवीजीव कहलाता है। इसी प्रकार जलादिकमें भी चार-चार भेद कर लेने चाहिए। ये पाँचों प्रकारके प्राणी स्थावर हैं। शंका – इनके मितने प्राण होते हैं ? समाधान – इनके चार प्राण होते हैं – स्पर्शन इन्द्रियप्राण, कायबलप्राण, उच्छ्वास-नि:श्वासप्राण और आयु:प्राण।