चित चिंतकैं चिदेश कब
From जैनकोष
चित चिंतकैं चिदेश कब, अशेष पर वमू ।
दुखदा अपार विधि दुचार की चमू दमू ।।
तजि पुण्यपाप थाप आप, आपमें रमू ।।
कब राग-आग शर्म-बाग, दागिनी शमू ।।१ ।।
दृग-ज्ञानभानतैं मिथ्या, अज्ञानतम दमू ।
कब सर्व जीव प्राणिभूत, सत्त्वसौं छमू ।।२ ।।
जल मल्ललिप्त कल सुकल, सुबल्ल परिनमू ।
दलके त्रिशल्ल मल्ल कब, अटल्लपद पमू ।।३ ।।
कब ध्याय अज अमरको फिर न, भवविपिन भमू ।
जिन पूर कौल `दौल' को यह, हेतु हौं नमू ।।४ ।।