चेतन यह बुधि कौन सयानी
From जैनकोष
चेतन यह बुधि कौन सयानी, कही सुगुरु हित सीख न मानी ।।
कठिन काकताली ज्यौं पायौ, नरभव सुकुल श्रवन जिनवानी ।।चेतन. ।।
भूमि न होत चाँदनीकी ज्यौ, त्यौं नहिं धनी ज्ञेयको ज्ञानी ।
वस्तुरूप यौं तू यौं ही शठ, हटकर पकरत सोंज विरानी।।१ ।।चेतन. ।।
ज्ञानी होय अज्ञान राग-रुषकर निज सहज स्वच्छता हानी ।
इन्द्रिय जड़ तिन विषय अचेतन, तहाँ अनिष्ट इष्टता ठानी।।२ ।।चेतन. ।।
चाहै सुख, दुख ही अवगाहै, अब सुनि विधि जो है सुखदानी ।
`दौल' आपकरि आप आपमैं, ध्याय ल्याय लय समरससानी।।३ ।।आप. ।।