जानत क्यों नहिं रे, हे नर आतमज्ञानी
From जैनकोष
जानत क्यों नहिं रे, हे नर आतमज्ञानी
रागदोष पुद्गलकी संगति, निहचै शुद्धनिशानी।।जानत. ।।
जाय नरक पशु नर सुर गतिमें, ये परजाय विरानी ।
सिद्ध-स्वरूप सदा अविनाशी, जानत विरला प्रानी ।।जानत. ।।१ ।।
कियो न काहू हरै न कोई, गुरु सिख कौन कहानी ।
जनम-मरन-मल-रहित अमल है, कीच बिना ज्यों पानी ।।जानत. ।।२ ।।
सार पदारथ है तिहुँ जगमें, नहिं क्रोधी नहिं मानी ।
`द्यानत' सो घटमाहिं विराजै, लख हूजै शिवथानी ।।जानत. ।।३ ।।