जिन जपि जिन जपि, जिन जपि जीयरा
From जैनकोष
जिन जपि जिन जपि, जिन जपि जीयरा
प्रीति करि आवै सुख, भीति करि जावै दुख,
नित ध्यावै सनमुख, ईति न आवे नीयरा ।।जिन. ।।१ ।।
मंगल प्रवाह होय, विघनका दाह धोय,
जस जागै तिहुँ लोय, शांत होय हीयरा ।।जिन. ।।२ ।।
`द्यानत' कहाँ लौं कहै, इन्द्र चन्द्र सेवा बहै,
भव दुख पावकको, भक्ति नीर सीयरा ।।जिन. ।।३ ।।