ज्ञानी ऐसी होली मचाई
From जैनकोष
ज्ञानी ऐसी होली मचाई ।।टेक. ।।
राग कियौ विपरीत विपन घर, कुमति कुसौति सुहाई ।
धार दिगम्बर कीन्ह सु संवर, निज परभेद लखाई ।
घात विषयनिकी बचाई ।।१ ।।
कुमति सखा भजि ध्यानभेद सम, तनमें तान उड़ाई ।
कुंभक ताल मृदंगसौं पूरक, रेचक बीन बजाई ।
लगन अनुभवसौं लगाई ।।२ ।।
कर्मबलीता रूप नाम अरि, वेद सुइन्द्रि गनाई ।
दे तप अग्नि भस्म करि तिनको, धूल अघाति उड़ाई ।
करि शिव तियकी मिलाई ।।३ ।।
ज्ञानको फाग भागवश आवै, लाख करौ चतुराई ।
सो गुरु दीनदयाल कृपाकरि, `दौलत' तोहि बताई ।
नहीं चितसे विसराई ।।४ ।।