द्रव्य मोक्ष
From जैनकोष
भगवती आराधना/38/134/18 निरवशेषाणि कर्माणि येन परिणामेन क्षायिकज्ञानदर्शनयथाख्यातचारित्रसंज्ञितेन अस्यंते स मोक्षः । विश्लेषो वा समस्तानां कर्मणां । = क्षायिक ज्ञान, दर्शन व यथाख्यात चारित्र नाम वाले (शुद्धरत्नत्रयात्मक) जिन परिणामों से निरवशेष कर्म आत्मा से दूर किये जाते हैं उन परिणामों को मोक्ष अर्थात् भावमोक्ष कहते हैं और संपूर्ण कर्मों का आत्मा से अलग हो जाना मोक्ष अर्थात् द्रव्य मोक्ष है ।
पंचास्तिकाय / तात्पर्यवृत्ति/108/173/10 कर्मनिर्मूलनसमर्थः शुद्धात्मोपलब्धिरूपजीवपरिणामो भावमोक्षः, भावमोक्षनिमित्तेन जीवकर्मप्रदेशानां निरवशेषः पृथग्भावो द्रव्यमोक्ष इति । = कर्मों के निर्मूल करने में समर्थ ऐसा शुद्धात्मा की उपलब्धि रूप (निश्चयरत्नत्रयात्मक) जीव परिणाम भावमोक्ष है और उस भावमोक्ष के निमित्त से जीव व कर्मों के प्रदेशों का निरवशेषरूप से पृथक् हो जाना द्रव्य मोक्ष है । ।
अधिक जानकारी के लिये देखें मोक्ष - 1।