धर्मरुचि
From जैनकोष
(1) चंद्रचर्या व्रत का धारक एक यति । भरतक्षेत्र में चंपानगरी के अग्निभूति ब्राह्मण की पुत्री नागश्री ने कोपवश इन्हें विषमिश्रित आहार दिया था । ये समाधिमरण कर सर्वार्थसिद्धि में देव हुए । महापुराण 72.227-234, हरिवंशपुराण - 64.6-11, पांडवपुराण 23.97-107
(2) जंबूद्वीप के मंगला देश में भद्रिलपुर नगर के घनदत्त सेठ और नंदयशा सेठानी का अंतिम नवां पुत्र । यह प्रियदर्शना और ज्येष्ठा का भाई था । इसने अपने पिता, भाइयों और बहिनों के साथ मंदिरस्थविर मुनि से दीक्षा ली थी । आयु के अंत में शरीर-त्यागकर यह आनत-स्वर्ग के शातंकर-विमान में उत्पन्न हुआ और वहाँ से चयकर समुद्रविजय का भाई हुआ । महापुराण 70.182-189, 193 हरिवंशपुराण - 18.112-116, 119-123 देखें धनपाल
(3) एक मुनि । ये छत्रपुर नगर के राजकुमार प्रीतिकर तथा मंत्री चित्रमति के पुत्र विचित्रमति के दीक्षागुरु थे । महापुराण 59. 256-257
(4) भरतक्षेत्र के अंग देश में चम्मानगरी का राजा श्वेतवाहन । इसने अपने पुत्र विमलवाहन को राज्यभार सौंपकर संयम धारण किया । मुनि अवस्था में इसका नाम धर्मरुचि था । महापुराण 76.1-11 देखें धर्मरुचि
(5) महापुरी नगरी का राजा । यह राजा सुप्रभ और रानी तिलकसुंदरी का पुत्र था । इसने सुप्रभ मुनि से दीक्षा ली थी । आयु के अंत में यह महिंद्र स्वर्ग में देव हुआ और वहाँ से च्युत होकर सनत्कुमार चक्रवर्ती हुआ । पद्मपुराण - 20.147-153