ध्यान कृपान पानि गहि नासी
From जैनकोष
ध्यान कृपान पानि गहि नासि, त्रेसठ प्रकृति अरी ।
शेष पचासी लाग रही है, ज्यौं जेवरी जरी ।।ध्यान. ।।
दुठ अनंग मातंग भंगकर, है प्रबलंगहरी ।
जा पदभक्ति भक्तजनदुख-दावानल मेघझरी।।१ ।।ध्यान. ।।
नवल धवल पल सोहै कलमें, क्षुधतृषव्याधि टरी ।
हलत न पलक अलक नख बढ़त न गति नभमाहि करी।।२ ।।ध्यान. ।।
जा विन शरन मरन जर धरधर, महा असात भरी ।
`दौल' तास पद दास होत है, वास मुक्तिनगरी।।३ ।।ध्यान. ।।