नित उठ ध्याऊँ, गुण गाऊँ, परम दिगम्बर साधु
From जैनकोष
नित उठ ध्याऊं, गुण गाऊं, परम दिगम्बर साधु ।
महाव्रतधारी-२, महाव्रतधारी ।।टेक ।।
रागद्वेष नहीं लेश जिन्हों के मन में है, मन में हैं ।
कनककामिनी मोह काम नहीं, तन में है, तन में हैं ।
परिग्रह रहित निरारंभी, ज्ञानी व ध्यानी तपसी ।
नमो हितकारी भारी, नमो हितकारी ।।१ ।।
शीतकाल सरिता के तट पर, जो रहते, जो रहते ।
ग्रीष्मऋतु गिरिराज शिखर चढ़ अघ दहते, अघ दहते ।
तरूतल रहकर वर्षा में, विचलित ना होते लखभय ।
बन अंधियारी, यारी बन अंधियारी ।।२ ।।
कंचन काँच मसान महल सम, जिनके है जिनके हैं ।
अरि अपमान मान मित्र सम, तिनके है तिनके हैं ।
समदर्शी समता धारी, नग्न दिगम्बर मुनि हैं ।
भवजल तारी, तारी भवजल तारी ।।३ ।।
ऐसे परम तपो निधि जहाँ-२, जाते हैं जाते हैं ।
परम शांति सुख लाभ जीव सब, पाते हैं पाते हैं ।
भव-भव में `सौभाग्य' मिले, गुरू पद पूजूं ध्याऊं ।
वरू शिवनारी नारी शिवनारी ।।४ ।।