निपट अयाना, तैं आपा नहीं जाना
From जैनकोष
निपट अयाना, तैं आपा नहीं जाना, नाहक भरम भुलाना बे ।।टेक ।।
पीय अनादि मोहमद मोह्यो, परपदमें निज माना बे ।।
चेतन चिह्न भिन्न जड़तासों ज्ञानदरश रस-साना बे ।
तनमें छिप्यो लिप्यो न तदपि ज्यों, जलमें कजदल माना बे ।।२ ।।
सकलभाव निज निज परनतिमय, कोई न होय बिराना बे ।
तू दुखिया परकृत्य मानि ज्यौं, नभताड़न-श्रम ठाना बे ।।३ ।।
अजगनमें हरि भूल अपनपो, भयो दीन हैराना बे ।
`दौल' सुगुरु धुनि सुनि निजमें निज, पाय लह्यो सुखथाना बे ।।४ ।।