भविन-सरोरूहसूर भूरिगुनपूरित अरहंता
From जैनकोष
भविन-सरोरूहसूर भूरिगुनपूरित अरहंता ।
दुरित दोष मोष पथघोषक, करन कर्मअन्ता ।।भविन. ।।
दर्शबोधतैं युगपतलखि जाने जु भाव%नन्ता ।
विगताकुल जुतसुख अनन्त अन्त शक्तिवन्ता।।१ ।।भविन. ।।
जा तनजोत उदोतथकी रवि, शशिदुति लाजंता ।
तेजथोक अवलोक लगत है, फोक सचीकन्ता।।२ ।।भविन. ।।
जास अनूप रूपको निरखत, हरखत हैं सन्ता ।
जाकी धुनि सुनि मुनि निजगुनमुन, पर-गर उगलंता।।३ ।।भविन. ।।
`दौल' तौल विन जस तस वरनत, सुरगुरु अकुलंता ।
नामाक्षर सुन कान स्वानसे, रांक नाक गंता।।४ ।।भविन. ।।