मेरे कब ह्वै वा दिन की सुघरी
From जैनकोष
मेरे कब ह्वै वा दिन की सुघरी ।।टेक ।।
तन विन वसन असनविन वनमें, निवसों नासादृष्टिधरी ।।
पुण्यपाप परसौं कब विरचों, परचों निजनिधि चिरविसरी ।
तज उपाधि सजि सहजसमाधी, सहों घाम हिम मेघझरी ।।१ ।।
कब थिरजोग धरों ऐसो मोहि, उपल जान मृग खाज हरी ।
ध्यान-कमान तान अनुभव-शर, छेदों किहि दिन मोह अरी ।।२ ।।
कब तृनकंचन एक गनों अरु, मनिजडितालय शैलदरी ।
`दौलत' सत गुरुचरन सेव जो, पुरवो आश यहै हमरी ।।३ ।।