मैं आयौ, जिन शरन तिहारी
From जैनकोष
मैं आयौ, जिन शरन तिहारी ।
मैं चिरदुखी विभावभावतैं, स्वाभाविक निधि आप विसारी ।।मैं. ।।
रूप निहार धार तुम गुन सुन, वैन होत भवि शिव मगचारी ।
यौं मम कारज के कारन तुम, तुमरी सेव एक उर धारी ।।१ ।।
मिल्यौ अनन्त जन्मतैं अवसर, अब विनऊँ हे भवसर तारी ।
परम इष्ट अनिष्ट कल्पना, `दौल' कहै झट मेट हमारी ।।२ ।।