योगसार - चारित्र-अधिकार गाथा 392
From जैनकोष
चेलखण्ड धारक साधु की स्थिति -
`सूत्रोक्त' मिति गृह्णानश्चेलखण्डमिति स्फुट् ।
निरालम्बो निरारम्भ: संयतो जायते कदा ।।३९२।।
अन्वय :- (य:) संयत: सूत्रोक्तं इति (मत्वा) चेलखण्डं स्फुटं गृह्णान: निरालम्ब: (च) निरारम्भ: कदा जायते ? (कदा अपि नैव) ।
सरलार्थ :- जो संयमी अर्थात् मुनिराज `आगम में कहा है' ऐसा कहकर खण्डवस्त्र/लंगोट आदि बाह्य परिग्रह को स्पष्टतया धारण करते हैं, वे निरालम्ब और निरारम्भ कब हो सकते हैं? अर्थात् कभी भी नहीं हो सकते ।