योगसार - चूलिका-अधिकार गाथा 467
From जैनकोष
ध्यान से उत्पन्न सुख की विशेषता -
निरस्त-मन्मथातङ्कं योगजं सुखमुत्तमम् ।
शमात्मकं स्थिरं स्वस्थं जन्ममृत्युजरापहम् ।।४६७।।
अन्वय :- योगजं सुखं उत्तमं निरस्त-मन्मथ-आतङ्कं शमात्मकं स्वस्थं स्थिरं (तथा) जन्ममृत्युजरापहम् (अस्ति) ।
सरलार्थ :- योग से अर्थात् ध्यानजन्य-विविक्तात्म परिज्ञान से उत्पन्न हुआ जो सुख है वह उत्तम, कामदेव के आतंक से/विषय वासना की पीड़ा से रहित, शान्तिस्वरूप, निराकुलतामय, स्थिर, स्वात्मस्थित और जन्म-जरा तथा मृत्यु का विनाशक है ।