योगसार - चूलिका-अधिकार गाथा 468
From जैनकोष
सुख एवं दु:ख का संक्षिप्त लक्षण -
सर्वं परवशं दु:खं सर्वात्मवशं सुखम् ।
वदन्तीति समासेन लक्षणं सुख-दु:खयो: ।।४६८।।
अन्वय :- परवशं सर्वं दु:खं (अस्ति),आत्मवशं सर्वं सुखं (अस्ति); इति (सर्वज्ञा:) सुख-दु:खयो: लक्षणं समासेन वदन्ति ।
सरलार्थ :- `जो-जो पराधीन है वह सब दु:ख है और जो-जो स्वाधीन है वह सब सुख है' इसप्रकार (सर्वज्ञ भगवान) संक्षेप से सुख-दु:ख का लक्षण कहते हैं ।