योगसार - चूलिका-अधिकार गाथा 469
From जैनकोष
भोग एवं आत्मज्ञान का स्वरूप -
तत: पुण्यभवा भोगा दु:खं परवशत्वत: ।
सुखं योगभवं ज्ञानं स्वरूपं स्ववशत्वत: ।।४६९।।
अन्वय :- तत: पुण्यभवा: भोगा: परवशत्वत: दु:खं (भवति) । योगभवं ज्ञानं स्ववशत्वत: सुखं स्वरूपं (भवति) ।
सरलार्थ :- जो जो पराधीन है वह सब दु:ख है । इसलिए पुण्य से उत्पन्न हुए जो जो भोग हैं, वे सब परवश/पराधीन होने से दु:खरूप हैं । योग अर्थात् ध्यान से उत्पन्न हुआ जो निज शुद्ध आत्मा का ज्ञान है, वह स्वाधीन होने से सुखरूप एवं अपने आत्मा का स्वरूप है ।