योगसार - मोक्ष-अधिकार गाथा 316
From जैनकोष
ज्ञान के कारण आत्मा सर्वज्ञ एवं सर्वदर्शी -
सर्वज्ञ: सर्वदर्शी च ततो ज्ञानस्वभावत: ।
नास्य ज्ञान-स्वभावत्वमन्यथा घटते स्फुट् ।।३१६।।
अन्वय :- तत: ज्ञानस्वभावत: (एव आत्मा) सर्वज्ञ: सर्वदर्शी च (अस्ति) । अन्यथा (सर्वज्ञत्व-सर्वदर्शित्व-अभावे) अस्य (आत्मन:) स्फुटं ज्ञान-स्वभावत्वं अपि न घटते ।
सरलार्थ :- इस ज्ञानस्वभाव के कारण ही आत्मा सर्वज्ञ और सर्वदर्शी है । यदि आत्मा को सर्वज्ञ और सर्वदर्शी नहीं माना जाय तो आत्मा का ज्ञानस्वभाव भी घटित नहीं हो सकता ।