योगसार - मोक्ष-अधिकार गाथा 317
From जैनकोष
सिद्ध होने का साक्षात् साधन -
वेद्यायुर्ना-गोत्राणि यौगपद्येन केवली ।
शुक्लध्यान-कुठारेण छित्त्वा गच्छति निर्वृतिम् ।।३१७।।
अन्वय :- केवली वेद्य-आयुर्ना-गोत्राणि (कर्माणि) शुक्लध्यान-कुठारेण यौगपद्येन छित्त्वा निर्वृतिं गच्छति ।
सरलार्थ :- केवलज्ञानी अरहंत परमात्मा वेदनीय, आयु, नाम और गोत्र इन चारों ही अघाति कर्मो को शुक्लध्यानरूपी कुठार से एक साथ छेदकर सिद्ध अवस्था को प्राप्त होते हैं ।