योगसार - मोक्ष-अधिकार गाथा 325
From जैनकोष
कर्मबंध को मात्र जानने से मुक्ति नहीं -
विविधं बहुधा बन्धं बुध्यमानो न मुच्यते ।
कर्म-बद्धो विनोपायं गुप्ति-बद्ध इव ध्रुवम् ।।३२५।।
अन्वय :- गुप्ति-बद्ध: इव कर्म-बद्ध: विविधं बन्धं बहुधा बुध्यमान: (अपि) उपायं विना न मुच्यते ध्रुवम् ।
सरलार्थ :- जिसप्रकार कारागृह में पडा हुआ बंदी/कैदी ``मैं कारागृह में कैद हूँ इसप्रकार मात्र जानने से कारागृह से मुक्त नहीं होता; उसीप्रकार ज्ञानावरणादि कर्मो से बंधा हुआ संसारी जीव अनेक प्रकार के कर्म-बंधनों को बहुधा/अनेक प्रकार से मात्र जानता हुआ कर्मो से छूटने का वास्तविक उपाय किये बिना मुक्त नहीं होता, यह निश्चित है ।