योगसार - मोक्ष-अधिकार गाथा 326
From जैनकोष
यथार्थ उपाय करने से मुक्ति -
विभेदं लक्षणैर्बुद्ध्वा स द्विधा जीव-कर्मणो: ।
मुक्तकर्मात्मतत्त्वस्थो मुच्यते सदुपायवान् ।।३२६।।
अन्वय :- य: जीव-कर्मणो: लक्षणै: द्विधा विभेदं बुद्ध्वा मुक्त-कर्म-आत्मतत्त्वस्थ: स: सदुपायवान् मुच्यते ।
सरलार्थ :- जो जीव और कर्म को अपने-अपने लक्षणों से दो प्रकार के भिन्न-भिन्न पदार्थ जानकर कर्म को छोड़ देते हैं/कर्म से उपेक्षा धारण करते हैं अर्थात् द्रव्यकर्म, भावकर्म, नोकर्म के मात्र ज्ञाता-दृष्टा रहते हैं और आत्मा में लीन रहते हैं, वे सद्/यथार्थ उपायवान कर्मो से छूटते हैं अर्थात् मुक्त हो जाते हैं ।