रत्नजटी
From जैनकोष
विद्याधर अर्कजटी का पुत्र । इसने सीता को हरकर आकाशमार्ग से जाते हुए रावण को देखा और सीता को छुड़ाने के लिए रावण से युद्ध करना चाहा था । रावण ने इसे अजेय जानकर इसकी विद्या का हरण करके इसे निर्बल बनाया । यह विद्या के न रहने से समुद्र के बीच कंबु नामक द्वीप में आ गिरा था । सुग्रीव के साथ राम के निकट आकर इसने अपनी विद्या का और सीताहरण का समाचार राम को दिया था । सीता की जानकारी पाकर राम ने इसे देवोपगीत नगर का स्वामित्व देते हुए इसका सत्कार किया था । (पद्मपुराण - 45.58-69,पद्मपुराण - 48.89-91, 96-97, 88.42)