वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 1106
From जैनकोष
इंद्रियार्थानपाकृत्य स्वतत्त्वमवलंबते।
यदि योगी तथाप्येते छलयंति मुहुर्मन:।।1106।।
रागादिकों द्वारा भावमन का छलन:― योगीपुरुष इंद्रिय विषयों को दूर करके आत्मतत्त्व का आलंबन लेते हैं, फिर भी ये रागादिक भाव बराबर इस मन को उलझाते छलते हैं। एक बार समवशरण में किसी एक श्रावक ने अपने किसी गुरु के बाबत पूछा― महाराज वह मुनिराज किस भाव के हैं, कहाँउनका जन्म होगा? तो उत्तर मिला कि अभी-अभी आध मिनट पहिले ऐसा परिणाम था कि उस परिणाम में यदि वह मरता तो नरक जाता और अब उसका ऐसा परिणाम है कि मृत्यु हो तो वह स्वर्ग जायेगा। तो ये विकार क्षण-क्षण में कितना ऊँच और नीच बदलते रहते हैं। इंद्रिय के विषयों की वासना भी नहीं रही। आत्मतत्त्व का आलंबन भी अधिकतर किया करता है ऐसा ज्ञानी और विरक्त है साधु, तिस पर भी वे रागादिक उनके मन को छलते रहते हैं। बैरी हैं अपने ये रागादिक भाव। दूसरा जीव कोई बैरी नहीं। जिस बात में राग लगा है वह राग दु:खी कर रहा है। किसी को संपदा में राग है, तो वह राग बैरी है। संपदा के घात करने वाले अथवा यह संपदा कोई बैरी नहीं है।राग बैरी है।कभी-कभी किसी जीव को धर्मात्मा जन भी नहीं सुहाते और ऐसी स्थिति में वे दु:खी रहा करते हैं। तो क्या उसको धर्मात्मा ने दु:खी कर दिया? नहीं। उसे कुछ अपने विषय लगे हैं अपनी आदत अपने आचार उसके न्यारे हैं जिसमें लाचार होकर वह धर्मात्माजनों को भी अपना बैरी समझ लेता है। एक दोहा बहुत प्रसिद्ध है। एक सूम कहीं दूसरे धनी को दान करते हुए देख आया तो उसके बुखार चढ आया। अहो ये लोग कैसा लुटाये दे रहे हैं। उसकी उदासी को देखकर नारी पूछती है―‘‘नारी पूछे सूम से काहे बदन मलीन? क्या तेरो कछू गिर गयो या काहु को दीन?’’ स्त्री क्या पूछती हे कि आज आप इतने उदास क्यों हैं? आपने आज किसी को कुछ दे डाला है या आपका कुछ गिर गया है?तो वह पुरुष उत्तर देता है ‘‘ना मेरा कछु गिर गयो ना काहु को दीन। देतन देखा और को तासो बदन मलीन।।’’ हे नारी ! मेरा कुछ गिर नहीं गया है और नकिसी को कुछ दे डाला है, पर औरों को दान देते हुए देख लिया, कैसा वे सारा का सारा धन बड़े परिश्रम से कमाया हुआ लुटाये दे रहे थे, इस बात को देखकर आज मेरा मल मलिन है। तो अपने ही आचार के कारण कुछ पुरुष ऐसे होते हैं जो धर्मात्माजनों को भी अपना बैरी समझ लेते हैं। निष्कर्ष यह निकालें कि किसी न किसी पदार्थ में राग लगा है जिससे यह जीव दु:खी है।