वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 1120
From जैनकोष
स्वभावजमनातंक वीतरागस्य यत्सुखम्।
न तस्यानंतभागोऽपि प्राप्यते त्रिदशश्वरै:।।1120।।
वीतराग पुरुष के स्वभावज सुख की महिमा:― कहते हैं कि जो रागद्वेष से रहित पुरुष है उसको जो सुख प्राप्त होता है बड़े-बड़े देवेंद्रों को भी उस सुख का अनंतवां भाग भी नहीं मिलता, क्योंकि वीतराग योगीश्वरों का सुख तो स्वभाव से उत्पन्न होता है किंतु देवेंद्रों के सुख स्वभाव से उत्पन्न होते नहीं हैं। उसमें अधिक आधीनताएँहैं। कर्मों का उदय अनुकूल हो तो उन्हें सुख मिले। और वीतराग योगीश्वरों को आनंद आतंकरहित है पर विशेश्वरों का सुख आतंक सहित है। इस कारण निर्मल ज्ञान वाले पुरुषों के जो सुख उत्पन्न होता है वह सुख बड़े-बड़े देवेंद्रों को भी नहीं मिलता।