वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 1292
From जैनकोष
काककौशिकमार्जारखरगोमायुमंडलै:।
अवधुष्टं हि विघ्नाय ध्यातुकामस्य योगिन:।।1292।।
जिस स्थान में कौवा, उल्लू आदिक रहते हों, जिनकी आवाज, जिनका स्वरूप विडरूप है वह स्थान भी ध्यानसाधना के योग्य नहीं है। भले ही किसी योग्य स्थान पर ये पक्षी आ जायें तो इससे कहीं वह छोड़ देने की बात नहीं है, पर जिन पेड़ों पर, जिन खंडहरों में कौवा, उल्लू आदिक बसते हों, वह स्थान उनके शब्दों के आवागमन से क्षुब्ध रहता है वह स्थान ध्यान के योग्य नहीं है, और बिलाव, गधे, कुत्ते, स्याल आदिक जहाँ बोला करते हैं वह स्थान भी ध्यानी के योग्य नहीं है। प्रथम तो ये सब जानवर हिंसक हैं, इनका आवागमन सुनकर इनकी हिंसा पर ध्यान पहुँच जाता है और फिर इनकी आवाज चूँकि हिंसक जानवर हैं सो उस आवाज को सुनते ही बुरी मालूम होती है और फिर शब्दों में क्षोभ है अतएव जहाँ कुत्ता, बिल्ली, स्याल आदिक हों, वे जहाँ बोला करते हों वह स्थान ध्यानसिद्धि का कारण नहीं बन पाता। जो योगी मुनि ध्यान करने की इच्छा करते हों उन्हें चाहिए कि इन हिंसक पशुपक्षियों और जो खोटे शब्द बोलने वाले हैं उनके रहने के स्थान को छोड़ दें।