वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 1356
From जैनकोष
सुवृत्तं बिंदुसंकीर्ण नीलांजनघनप्रभम्।
चंचलं पवनोपेतं दुर्लक्ष्यं वायुमंडलम्।।1356।।
जो सुव्रत कहो गोलाकार है तथा बिंदुवों सहित है, नीले घन के समान है वर्ण जिसका तथा बहता हुआ पवन, चूँकि वायु बहती है गोल रूप से, एकदम सीधी नहीं बहती। कुछ न कुछ उसका पशु आकार होता है अतएव उसे चंचल कहा गया है। गोलाकार बिंदुवों सहित जिसका वर्ण नीले घन के समान है, नीला रंग वायु का बताया है, ऐसे पवन अक्षर सहित जो नासिका से निकलने वाली वायु है वह वायुमंडल कहा जाता है।