वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 1379
From जैनकोष
अमृतमिव सर्वगात्रं प्रीणयति शरीरिणामं ध्रुवं वामा।
क्षपयति तदेव शश्वद्वहमाना दक्षिणा नाडी।।1379।।
बायें स्वर से श्वास बाईं नाड़ी यदि निरंतर बहती रहे तो जीवों के समस्त शरीर को अमृत के समान तृप्त करती है। और दाहिनी नाड़ी यदि लगातार बहती रहे तो वह शरीर को क्षीण करती है। शारीरिक स्वास्थ्य पर इन श्वासों का क्या प्रभाव पड़ता है, उसकी बात यहाँ कही जा रही है। बायें स्वर से श्वास का निकलना शरीर के लिए लाभदायक बताया है। अधिकतर निकला करे तो और दाहिने स्वर से लगातार घंटों श्वास निकले तो वह शरीर को क्षीण करने वाली कही गई है। दाहिना स्वर एक क्रूरता और आताप भरा है और बायां स्वर एक शांति और शीतलता को प्रकट करने वाला कहा गया है। स्वर 10-15 मिनट भी किसी का एक ही स्वर से नहीं चलता, बदलता रहता है, कभी दाहिने नाक से निकलता है तो कभी बाम नाक से स्वर निकलता है। उसीसिलसिले में यह कहा जा रहा है कि यदि दाहिने स्वर से बहुत देर तक निकलती ही रहे श्वास तो उसका प्रभाव शरीर पर अच्छा नहीं होता। और कदाचित् बाम श्वास बहुत देर तक निकलती रहे तो उसका शरीर पर प्रभाव अच्छा रहता है।