वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 1380
From जैनकोष
संग्रामसुरतभोजनविरुद्धकार्येषु दक्षिणेष्टा स्यात्।
अभ्युदयहृदयवांछितसमस्तशस्तेषु वामैव।1380।।
कहीं युद्ध के लिए जाना हो, संग्राम की कोई बात हो तो दक्षिण स्वर से श्वास निकले वह शुभ और इष्ट माना गया है। चलित और क्रूर कार्यों के लिए दक्षिण स्वर ठीक माना गया है, इसी प्रकार स्वरत काल में भोजन आदिक काल में दाहिनी नाड़ी शुभ मानी गयी है। भोजन करते समय यदि दाहिनी ओरसे श्वास निकलती हो तो उसका प्रभाव अच्छा होता है। भोजन को स्वपच बनता है और शरीर में स्वास्थ्य उत्पन्न करे इसका वह कारण है। तो जो कोई थोड़ा स्वरविज्ञान जानता है वह इसी बाट पर बैठा रहे कि हमें 9 बजे भोजन करनाहै, देखा कि अभी दाहिना स्वर नहीं निकल रहा तो कहो दाहिने स्वर की बाट हेरे, घंटों बैठा ही रहे। कुछ लोग तो प्रयोग करके स्वर बदलने की चेष्टा करते हैं। जैसे बायें स्वर से निकल रही हो श्वास तो बायें हाथ की मुट्ठी बाँधकर दाहिने काँख में लगाकर जोर से बैठ जाते हैं और कुछ ही देर बाद दाहिना स्वर आ जाता है, इसी प्रकार दाहिने स्वर से बदलने का भी यत्न है कि दाहिने हाथ मुट्ठी बायें काँख में दबाकर बैठे तो बायाँ स्वर आ जाता है। ये कुछ साधन हैं तो किन स्वरों में कौनसा कार्य करें यह स्वरविज्ञानी लोग जिस प्रकार करते हैं उसकी बात यहाँ कही जा रही है। शुद्ध भोजन आदिक विरुद्ध कार्यों में और कोई विपरीत कार्यों में दाहिने स्वर को शुभ कहा है और मनोवांछित समस्त शुभ कार्यों में बामस्वर को शुभ कहा गया है। यह एक साधक पुरुष की ऐसी घटनाएँ बनती हैं और उनका यह विज्ञान बताया जा रहा है। कोई परीक्षण करे तो कर भी सकता है, पर परीक्षण करने में उसका विशेष समय बरबाद होता है और एक संदेह की बात बन जाती है। इसलिए न करना ही ठीक है, पर उसका यह प्रयोग वैज्ञानिक रूप में बताया गया है। इससे तत्त्व इतना ही लेना कि मोक्ष के लिए उद्यम करने वाले योगी ज्ञानीध्यानी पुरुष प्राणायाम की साधना में क्या-क्या और चमत्कार पा लेते हैं उन चमत्कारों का इसमें वर्णन है।