वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 1808-1809
From जैनकोष
आकलय्य तदाकूतं सचिवा दिव्यचक्षुष: ।
नातिपूर्वं प्रवर्तंते वक्तुं कालोचितं तदा ।। 1808 ।।
प्रसाद: क्रियतां देव नतानां स्वेच्छया दृशा ।
श्रूयतां च वचोऽस्माकं पौर्वापर्यप्रकाशकम ।।1809।।
उपस्थित देवों द्वारा उत्पन्न देव के प्रति सर्व समाचारों का आवेदन―वहाँ महा ऋद्धि वाले देव देवेंद्र जब उत्पन्न होते हैं तो उनकी उत्पत्ति के समय उनके चित्त में प्रथम क्या बीतती है, क्या चिंतन चलता है उसका कुछ वर्णन चल रहा है । उनके मुख की मुद्रा से उनके इन विचारों को जानकर और फिर अवधि ज्ञान के द्वारा उनके भावों को स्पष्ट जानकर उस समय मंत्री जन उस उत्पन्न हुए देवेंद्र के अभिप्राय का समाधान करने के लिए उस देव को नमस्कार कर के विनयपूर्वक प्रणाम कर के वे मंत्री जन कहते हैं कि हे देव ! हम सेवकों पर आप प्रसन्न हूजिये । उन्हीं खड़े हुए सब देव देवियों के प्रति उस देवेंद्र का चिंतन चल रहा है । यह कौनसा नगर है, यह कौनसी भूमि है? कोई पुरुष नगर अथवा भूमि का विचार करता हो तो उसमें यह बात अंतर्गत है वहाँ के निवासियों के प्रति यह जिज्ञासा बनी है कि ये खड़े हुए जो दिव्य कांति वाले लोग हैं ये कौन हैं तो उनकी ही बात का समाधान पाने के लिए इन मंत्रियों ने किस प्रकार विनयपूर्वक शुरुवात की? हे देव ! हम सेवकों पर आप प्रसन्न हूजिये, और निर्मल दृष्टि से देखिये―हमारे पूर्वापर परिपाटी के प्रकाश करने वाले वचनों को सुनो । उस देवेंद्र ने यही तो सब एक जिज्ञासा बनाया था कि यह सब है क्या? यद्यपि थोड़े ही समय बाद अवधिज्ञान से वह सब समझ लेगा लेकिन तत्काल जैसा जो भाव हो उस भाव की बात यहाँ बतायी जा रही है । तो चित्त में जिन-जिन वस्तुवों के प्रति देवेंद्र का एक निर्णय का ख्याल चल रहा था कि यह सब क्या चीज है, उस अभिप्राय को जानकर वहाँ के मंत्री लोग उनकी समस्त समस्यावों का समाधान करेंगे । प्रथम हो तो एक अपनी चर्चा द्वारा अपनी जन्म परिणति द्वारा बहुत कुछ समाधान तो मंत्रियों ने तत्काल कर दिया है, एक उनके विनयपूर्ण भाव को देखकर जो कुछ इस उत्पन्न हुए देव ने अर्द्ध निर्णय दिया था कुछ संभ्रम के साथ जो कुछ जानकारी बनाया था उसका समाधान तो मंत्री बोलते ही जाते हैं । जो कुछ शंका थी, जो कुछ एक विलक्षणता देखकर मन में कुछ संभ्रांति थी वह सब संभ्रांति उन मंत्रियों के विनयपूर्ण व्यवहार से बहुत कुछ समाप्त हो जाती है । फिर वे मंत्री जन अनेक वस्तुवों को दिखा दिखाकर उस देवेंद्र के सभी प्रश्नों का समाधान करते कि यह सब है क्या? यह पुण्यवान पुरुषों की उत्पत्ति के समय की घटना बतायी जा रही है । कैसा सुखद वातावरण में इनका जन्म हुआ करता है? जिन्होंने पूर्व भव में धर्म धारण किया, तपश्चरण किया, संयम किया, दया दान के परिणाम रखा ऐसे धर्मधारी जीव विशिष्ट राग के कारण जो पुण्य बाँधा था उसके फल में यहाँ उत्पत्ति हुई, उस ही का यह सब वर्णन है ।