वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 2143
From जैनकोष
एवं शांतकषायस्या कर्मकक्षा शुशुक्षणि: ।
एकत्वध्यानयोग्य: स्यात्पृथक्त्वेन जिताशय: ।।2143।।
कषायविश्लेष से एकत्ववितर्कावीचार की योग्यता―यहां पहिले शुक्लध्यान की चर्चा चल रही थी कि नाना प्रकार के तत्वों के ज्ञान करते रहने से जो आत्मा में एक बल प्रकट हुआ है अब उसके कारण इसकी कषायें शांत होती हैं, कर्मों के समूह दूर होते हैं और एकत्ववितर्कअवीचार शुक्लध्यान के योग्य हो जाता है । देखिये जब सारे रागद्वेष समाप्त होते हैं तब परमार्थ शुक्लध्यान होता है । यह शुक्लध्यान 12वें गुणस्थान में है और 1 0वें गुणस्थान के अंत में समस्त कषायें नष्ट हो जाती हैं । तो इस पृथक्त्ववितर्कवीचार ध्यान के प्रताप से चारित्रमोह की 21 प्रकृतियों का विनाश होता है । इनके विनाश होगे पर ये योगीश्वर एकत्ववितर्कअवीचार शुक्लध्यान के पात्र होते हैं ।