वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 2148-2149
From जैनकोष
एकं द्रव्यमथाणुं वा पर्यायं चिंतयेद्यदि ।
योगैकेन यदक्षीणं तदेकत्वमुदीरितम् ।।2148।।
अस्मिन् सुनिर्मलध्यानहुताशे प्रविजृंभिते ।
विलीयंते क्षणादेव घातिकर्माणि योगिन: ।।2149।।
एकत्ववितर्क अविचार शुक्लध्यान के प्रताप से शेष घातिया कर्मों का विनाश―इस एकत्ववितर्कअवीचार नामक द्वितीय शुक्लध्यान के प्रताप से इसमें अपनी निर्मल ध्यानरूपी अग्नि के बढ़ जाने पर योगी के क्षणमात्र में घातिया कर्म नष्ट हो जाते हैं । 12वें गुणस्थान में मोहनीय कर्म नहीं है । 10वें के अंत में समस्त मोहनीय कर्मों का नाश होता है, पर तीन घातिया कर्म अभी शेष हैं--ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अंतराय । ज्ञानावरण के कारण अनंत ज्ञान प्रकट नहीं होता । दर्शनावरण के निमित्त से अनंत दर्शन नहीं होता और अंतरायकर्म के निमित्त से आत्मा की अनंत शक्तियां प्रकट नहीं होतीं । ये तीन घातिया कर्म अब इस द्वितीय शुक्लध्यान के प्रताप से क्षणभर में नष्ट हो जाते हैं और घातिया कर्मों के नाश होते ही अरहंत अवस्था प्रकट होती है ।
आधार के नष्ट होते ही आधेय का लोप―बच्चे लोग एक कहानी बोला करते हैं―एक जंगल में स्याल और स्यालिनी थे । स्यालिनी के गर्भ था, स्यालिनी ने पूछा कि बच्चे कहाँ पैदा करें? तो एक शेर का घर (चूल) था, उस समय वह खाली था । स्याल ने कहा कि यहाँ पैदा करो । उसी में बच्चे पैदा हुए । अब दूर से देखा कि एक शेर आ रहा है―तो स्यालिनी बोली कि अब तो खैर नहीं है, स्याल बोला―घबड़ावो मत, हम इसका इलाज करेंगे ।देखो―जब शेर आये तो तुम बच्चों को रुला देना । हम पूछेंगे कि बच्चे क्यों रो रहे हैं? तो तुम यों जवाब दे देना । आखिर जब शेर निकट आ गया तो वह स्याल ऊपर की चोटी पर चढ़ गया । शेर आया बच्चे रोने लगे । स्याल ने पूछा कि बच्चे क्यों रोते हैं? तो स्यालिनी बोली―ये बच्चे शेर का मांस खाने को मांगते हैं । तो इस बात को सुनकर वह शेर डरकर भाग गया । सोचा कि यहाँ तो हमारा भी मांस खाने वाला कोई है । इसी तरह से दसों शेर आये और डरकर भाग गए । एक दिन बहुत से शेरों ने सलाह किया कि चलो उस जगह चलकर देखो तो सही कि हम सब शेरों का मांस खाने वाला कौन है? गए वहाँ । ऊपर बैठे हुए स्याल को देखकर बोले―बस इस स्याल की सारी करतूत है, चलो इसको पकड़कर मार दें ।परंतु वहाँ चढ़े कैसे? सलाह किया कि एक पर एक शेर चढ जाय और ऊपर वाला शेर उसे पकड़कर मार दे । तो सबसे नीचे कौन शेर खड़ा हो? सलाह हुई कि यह लंगड़ा शेर नीचे खड़ा हो क्योंकि यह ऊपर चढ़ नहीं सकता । नीचे लंगड़ा शेर खड़ा हुआ, उसके ऊपर एक पर एक कर के सभी खड़े हुए । स्यालिनी ने बच्चों को रुला दिया, स्याल ने पूछा कि ये बच्चे क्यों रोते हैं? स्यालिनी बोली―ये बच्चे लंगड़े शेर का मांस खाने को मांगते हैं । वह लंगड़ा शेर डरकर भागा, और एक पर एक भद्भद् करके गिरकर भागे । तो ऐसे ही सर्वविकारों का मूल दर्शन मोह के नष्ट होते ही चारित्र मोह तो सब यों ही नष्ट हो जाते हैं। इस पृथक्त्ववितर्कवीचार शुक्लध्यान के प्रताप से चारित्र घातक कर्म शीघ्र ही नष्ट हो जाते हैं, और फिर चारित्रमोह के नष्ट होने के बाद एकत्ववितर्कअवीचार शुक्लध्यान के प्रताप से शीघ्र शेष तीन घातिया कर्म भी नष्ट हो जाते' हैं ।