वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 366
From जैनकोष
हितोपदेशपर्जन्यैर्भव्यसारंगतर्पकां: ।निरपेक्षशरीरेऽपि सापेक्षा: सिद्धिसंगमे ॥366॥
जो मुनीश्वर हितोपदेशरूप मेघों से भव्य जीवरूपी चातकों को तृप्त करने वाले हैं और जो स्वयं शरीर में निरपेक्ष हैं किंतु मुक्ति का संग पाने में सापेक्ष हैं, अर्थात् मुक्ति की अभिलाषा रखते हैं वे पुरुष ध्यानसिद्धि के पात्र हैं । जो अपने भीतरी वचनों से अपने आपको समझा सकता है उसी पुरुष में ऐसी भी योग्यता है कि उन्हीं वचनों को बाह्यरूप देकर अर्थात् वचनोपदेश करके दूसरों को भी समझा सकता है । तो जो हितोपदेश वचनों से खुद को और दूसरों को समझाने का यत्न करता है और ऐसे ज्ञानस्वभाव के जो रुचियाँ हैं, जिन्हें अपने शरीर में एक अपेक्षा नहीं रही, मुक्ति के संग के लिए जिनकी उत्सुकता जगी है वे ही पुरूष ध्यानसिद्धि के पात्र होते हैं ।