वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 367
From जैनकोष
इत्यादिपरमोदारपुण्यायचणलक्षिता ।ध्यानसिद्धे: समाख्याता: पात्रं मुनिमहेश्वरा: ॥367॥
पुण्याचरण योगियों की ध्यानपात्रता –अनेक उदार पुण्याचरणों से युक्त जो मुनि महेश्वर हैं वे ध्यानसिद्धि के पात्र कहे गये हैं। जिन्हें शांति चाहिए, विश्राम चाहिए, ध्यान चाहिए उनका यह कर्तव्य है कि शुद्ध आचरणों से अपने जीवन बितायें । जिनका आचरण पवित्र नहीं है उनके ध्यान में स्थिरता नहीं हो सकती । ऐसे मुनि प्रधान योगीश्वर ध्यानसिद्धि के पात्र हैं । जो बात योगियों के लिए कही गई है वही बात श्रावकों के लिए भी समझनी चाहिए । सुख दुःख आनंद जीवन मरण ये सब जीवों को एक ही विधि से होते हैं । जैसी जिसमें कषाय है, जैसा जिसके आशय है वह अपने आशय और कषाय के अनुसार फल पाता है । हम अपना आशय निर्मल रखें, कषायों को ढीला करें, किसी कषाय में न बहें, उचित अनुचित का सब विवेक बनायें, इन शुद्धाचरणों से ध्यानसिद्धि की पात्रता रहती है । इस ही से मन स्थिर रह सकता है । इस प्रकरण में ध्याता योगीश्वरों की प्रशंसा करते हुए में अपने आपमें उन गुणों को प्रकट करने की भावना कही गई है ।