वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 412
From जैनकोष
तत्र जीवादय: पंच प्रदेशप्रचयात्मका: ।काया: कालं विना ज्ञेया भिन्नप्रकृतयोऽप्यमी ॥412॥
द्रव्यों के स्वभाव की अहेतुकता – उन छहों द्रव्यों में से एक कालद्रव्य को छोड़कर बाकी जीवादिक 5 पदार्थ 5 द्रव्य अनेक प्रदेशी होने के कारण अस्तिकाय हैं और कालाणु केवल एकप्रदेशी ही है उसे अस्तिकाय नहीं कहा गया है । कोई अस्तिकाय है, कोई नहीं है, कोई असंख्यातप्रदेशी है, केाई अनंतप्रदेशी है । इस प्रकार का जो कुछ भी विभिन्न स्वरूप है वह सब पदार्थों के स्वभाव से जाना । कोई ऐसा तर्क करने लगे कि पुद्गल में रूप, रस, गंध, स्पर्श ही क्यों होते हैं, इसमें जीवत्व क्यों नहीं होता, ये नीम की पत्ती कड़ुवी क्यों होती, ये पालक की तरह मीठे क्यों नहीं हो गए ? कोई हेतु बतावो ? क्या युक्ति दें ? प्रकृति कारण है । प्रकृति से ही नीम के पत्ते कड़ुवे हुए । उसमें अब और कारण क्या लादा जाय ? और कुछ कारण कहेंगे तो यह फिट तो नहीं बैठता । अटपट कोई कुछ कह दे । नीम का बीज कड़ुवा है उससे पत्ते कड़ुवे हो गए । अच्छा नीम के बीज कड़ुवे क्यों हो गए ? इसमें युक्ति दो । तो प्रकृति की जो चीज हैं उनका प्रकृति ही उत्तर है । जीव में चैतन्य क्यों हुआ ? ऐसी किसी ने सृष्टि की है क्या ? कोई लोकसभा हुई थी क्या, उसमें विचार चला था क्या, काई प्रोग्राम बना था क्या कि देखो अपने को कुछ पदार्थ बनाने हैं ? उनकी राय हुर्इ हो, कोई ढंग बना हो ऐसा तो नहीं है । पदार्थ है अनादि से है और है इसी से यह सिद्ध है किे जैसा है सो है । जिसका जो स्वभाव है वह है । यहाँ हम मनुष्यों में तो पूछ सकते हैं कि इस मनुष्य में यह आदत क्यों बन गई, क्योंकि मनुष्य में आदत रूप नहीं होता । किसी में चोरी की आदत है, किसी में हिंसा की हो, किसी में समता की हो तो पूछ सकते हैं और कह भी सकते हैं । क्योंकि वह वहाँ स्वभाव की बात नहीं है । वह अनेक पदार्थों के संबंध में होने वाले प्रभाव की बात है । पर किन्हीं एकाकी पदार्थों में हम कैसे यह खोज सकते हैं कि इसमें यह स्वभाव क्यों पड़ा ? क्यों हर जगह नहीं चलता । प्रकृति में "क्यों" का अवकाश नहीं है । और हर बात में क्यों क्यों की बात कहना भी मनुष्य का एक रोग है, क्योंकि रोग वाला मनुष्य किसी जगह आदर नहीं पाता । मास्टर पूछे बच्चे तुमने कला का पाठ याद कर लिया ? बच्चे कहें क्यों ? तो क्यों तो बैठे रहो । डाक्टर रोगी से पूछे कहो अब कैसी तबीयत है ? रोगी कहे क्यों ? तो क्यों तो क्यों सही ? जज पूछे वकील से तुम इसमें कुछ सबूत रखते हो ? वकील कहे क्यों ? क्यों है तो जावो । तो क्यों जहाँ फिट है वहाँ तो ठीक है, पर हर बात में क्यों-क्यों ही चले तो बात न निभेगी । ये समस्त पदार्थ स्वभाव से ही अपने अपने लक्षणरूप हैं । कोई अस्तिकाय है, कोई एकप्रदेशी है, कोई चेतन है, कोई अचेतन है, कोई मूर्त है, कोई अमूर्त है । जो है, जैसा है उसे वैसा बता दिया गया ।