वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 819
From जैनकोष
स्वजनधनधान्यदारा: पशुपुत्रपुराकरा गृहं भृत्या:।
मणिकनकरचितशय्या वस्त्राभरणादि बाह्यार्था:।।
परिग्रह की ग्रहरूपता- बाह्यपरिग्रह कौन कौन हैं? इस संबंध में यद्यपि 10 भेद बता दिये थे, अब 10 या किसी भेद में सीमा न रखकर उपयोग में आने वाले अनेक पदार्थों को बता रहे हैं कि ये बाह्य सब परिग्रह कहलाते हैं। स्वजन कुटुंब, यह तो परिग्रह सब परिग्रहों में एक विकट परिग्रह है। बाह्य जड़ पदार्थ तो इन्हें हम अपना मानें, इनका हम संग्रह करें तो परिग्रह बनते हैं, किंतु ये स्वजन उनको हम अपना मानते हैं, और अपनी ओर से कुछ ऐसा व्यवहार करते हैं कि हमारा उनकी ओर आकर्षण हो सके। और, अचेतन पदार्थ तो अपनी ओर से कुछ कहते नहीं। लेकिन हम अपने ही भावों से उनको परिग्रह बनाते हैं। यद्यपि स्वजन में भी अपने ही भावों से परिग्रह बनाते हैं लेकिन उनकी ओर से कुछ चेष्टा होती है रागभरी, जिससे यह शिथिल भी होता हो कभी तो पुन: उत्तेजित हो जाता है ममत्व करने में। वैसे तो रंचमात्र भी परिग्रह हो तो उन परिग्रह के आधार पर और और परिग्रह बढ़ाकर बहुत परिग्रही बन जाते हैं। एक साधु था तो उसकी लंगोटी को कोई चूहा उठा ले जाता था तो उसने सोचा कि एक बिल्ली पाल लें तो चूहों से रक्षा हो सकेगी, सो उसने एक बिल्ली पाल लिया, अब बिल्ली को चाहिए दूध सो दूध के लिए एक गाय पाल ली, गाय चराने के लिए एक नौकरानी रख ली। संयोग की बात कि बिल्ली के भी बच्चे हुए, गाय के भी बच्चे हुए और दासी के भी बच्चे हुए, अब सबकी भीड़ लग गई। आजीविका से परेशान होकर एक दिन किसी गाँव में रहने के लिए सोचा, सो सारी भीड़ भड़क्कड़ लेकर चल दिया। रास्ते में एक नदी पड़ी, जब उस नदी से निकल रहे थे तो एकाएक बाढ़ आयी, सब बहने लगे तो गाय, बछड़ा, बिल्ली के बच्चे, दासी के बच्चे सभी उससे चिपटने लगे। तो साधु सोचता है कि यह तो बड़ी आफत आयी, हम भी डूबेंगे, ये सब भी डूबेंगे, उसने सोचा कि इस सारे परिग्रह का कारण एक लँगोटी है, यदि यह लंगोटी न होती तो आज यह आफत न आती। आखिर साधु ने उस लंगोटी को भी खोलकर फेंक दिया, फिर तो वह साधु भी बच गया और वे सब भी बच गए। तो अल्प मात्र परिग्रह से भी बढ़ बढ़कर एक विशाल परिग्रह बन जाता है। धन, धान्य, स्त्री, पशु, पुत्र, नगर, गाँव, घर, नौकर, माणिक, रत्न, स्वर्ण, चाँदी, शय्या, वस्त्र, आवरण, श्रृंगार ये सभी के सभी पदार्थ बाह्य परिग्रह कहलाते हैं। अब देखिये बाह्य परिग्रहों में ऐसा क्या है जो इस मनुष्य के लिए अत्यंत आवश्यक हो? ऐसे बहुत कम हैं? अनावश्यक परिग्रह लोग रखा करते हैं, वह शल्य का ही कारण है। जिस चीज की जरूरत भी नहीं है, जो व्यर्थ में जगह घेरे पड़ी रहती है ऐसी ऐसी चीजों का परिग्रह लोग रखा करते हैं। जैसे बच्चे लोग एक माचिस में न जाने कितनी-कितनी चीजें रखकर खेला करते हैं- एक आध माचिस की काडी, एक दो पैसे, कुछ गोय्ची, कुछ इमली के बीज, यों अनेक चीजें एक छोटी सी माचिस के अंदर रखते हैं। उस छोटी सी माचिस को ही एक पंसारी की जैसी दुकान बना लेते हैं, ऐसे ही बिना मतलब की चीजों का परिग्रह लोग रखा करते हैं।