वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 873
From जैनकोष
चापलं त्यजति स्वांतं विक्रियाश्चाक्षदंतिन:।
प्रशाभ्यति कषायाग्निनैराश्याधिष्ठितात्मनाम्।।
नैराश्य का आलंबन करने वाले जीवों के चपलता, विकार व कषायों का परिहार- जिनकी आत्मा ने निराशता का आलंबन लिया है उनका मन चपलता को छोड़ देता है उसका मन चंचल नहीं रहता और इंद्रियरूपी हस्ती विषय विकारों को छोड़ देता है तथा विषयरूपी अग्नि शांत हो जाती है, मन चंचल होता है तो किसी जगह विश्राम नहीं मिल पाता, अपने लक्ष्य में स्थिर नहीं हो पाता, उसका कारण है आशा का परिग्रहण। जिसे आशा लगी है उसका मल अचलित नहीं रह पाता और फिर दु:खी होकर यत्र-तत्र फिरता है। मेरा मन बड़ा दु:खी है, चंचल है, कोई ऐसा उपाय बतावो कि जिससे मन ठिकाने लग जाय। अच्छा, तो क्या उपाय बता दें। उनकी तो कल्पना में यह उपाय है कि 10-50 हजार का वैभव दे दो तो मन स्थिर हो जाय। पर कदाचित् वैभव भी मिल जाय तो भी क्या मन वश हो जायगा? अरे तृष्णा और भी बढ़ जायेगी। गरीबी में अपना दाल रोटी खूब खाते थे तो वही एक मन का प्रसार था, उतने में ही संतुष्ट होता था। अब पहुँच जाय मिठाइयों तक तो अब कल्पनाओं का प्रसार और बढ़ जाता है। कहाँ तो गरीबी में सूखी रोटी भाजी में ही संतोष मानता था और अब मिठाइयों के बीच में भी संतुष्ट नहीं हो पाता। और भी कुछ वैभव बढ़ जाय, अनेक प्रकार के साधन बन जायें तो जितना कुछ मिलता जायगा उतना ही असंतोष बढ़ता जायेगा। इस आत्मा की रक्षा करने वाला बाहर में कहाँ कौन है? किसका सहयोग हमें मिल सकता है? कोई हम पर प्रसन्न भी हो जाय तो वह अपने ही मन में तो कुछ विचार बनायेगा, मेरा क्या करेगा? पृथक्-पृथक् सर्व पदार्थ हैं, किसी से मेरे में कुछ नहीं आता है। जब आशा से मन भरा हुआ है तो वह स्थिर हो ही नहीं सकता और आशावश पुरुषों के ये इंद्रियरूपी हस्ती ये विषयविकार को छोड़ नहीं सकते, मदोन्मत्त रहकर अपने विषयों में प्रवृत्ति करते हैं, और जब आशा है तब सभी प्रकार की कषाय अग्नि इसकी बढ़ जाती है। आशा से क्रोध भी बढ़ता है। उस आशा में किसी ने बाधा डाल दी तो उसमें वह क्लेश मानता है। उससे फिर उसकी क्रोधाग्नि और बढ़ जाती है, उस आशानुसार कुछ बात बन जाने से उसके घमंड बढ़ता है, और जब उस आशा की सिद्धि न चले तो वह मायाचार भी करेगा, और लोभ का रंग तो है ही। तो आशावान पुरुषों की कषायाग्नि शांत नहीं हो सकती। जिन पुरुषों ने निराशता का आलंबन लिया है उनका मन स्थिर होगा, कषायें शांत होंगी। इन आशावों को दूर करना चाहिए, आशायें दूर होंगी ज्ञान से। अतएव वस्तुस्वरूप के ज्ञान का हमें अधिकाधिक यत्न करना चाहिए।