वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 970
From जैनकोष
प्रोत्तुंगमानशैलाग्रवर्तिभिर्लुप्तबुद्धिभि:।
क्रियते मार्गमुल्लंध्य पूज्यपूजाव्यतिक्रम:।।970।।
मानशिखरस्धदुर्बुद्धिजनों द्वारा समीचीनमार्गोल्लंघन व पूज्यपुरुषों का अनादर―जो लोग बड़ेऊँचे मान पर्वत के शिखर पर चढ रहे हैं उनकी बुद्धि लुप्त हो गई है। मानी लोग सच्चे मार्ग का उल्लंघन करते हैं और अन्य पुरुषों की प्रतिष्ठा भी मिटा देते हैं। जब मान कषाय आती हे तो इतना अहंकार हो जाता। इतना वह पर्यायबुद्धि के विष में घिर जाता है कि पूज्य पुरुषों का भी अनादर कर डालता है। इससे आप देखिये कितना तेज मान करना पड़ता है तब पूज्य पुरुषों का अनादर किया जा सकता। तो जो मान के पर्वत शिखर पर चढ़े हुए हैं― ऐसे पुरुष समझते हैं अपने को बहुत बड़ा, लेकिन वे बहुत तुच्छ भाव में नजर आ रहे हैं। एक कथानक है ना कि जब रावण जा रहा था विमान में बैठा हुआ और बलि मुनि जिस पर्वत पर तपश्चरण कर रहे थे, उधर से विमान जा रहा था, विमान अटक गया। जब जाना कि यह विमान इसलिए अटका कि यहाँ पर बलिमुनि तपश्चरण कर रहे हैं, तब उसको इतना प्रबल मान कषाय जगा कि उसने निर्णय कर लिया कि इस पर्वत को ही उखाड़ कर फेंक दूँगा। उससे यह बालिमुनि अपने आप नष्ट हो जायगा। कितना तीव्र मान कषाय था जिसके आधार पर क्रोध इतना तीव्र जगा। तो अब देख लीजिए कि पूज्य पुरुषों की प्रतिष्ठा का लोप कर देना कितना तेज मान कषाय क्रोध करने के परिणाम में हो सकता है। तो जो मान शिखर पर चढ़ा हुआ हो वह पूज्य पुरुषों की प्रतिष्ठा भी नष्ट कर देता है और समीचीन मार्ग का उल्लंघन भी कर देता है। यद्यपि रावण जैन धर्म से प्रीति रखने वाला, साधुसंतों की भक्ति रखने वाला था, लेकिन मान कषाय का कितना उदय हुआ कि उसने समीचीन मार्ग का भी उल्लंघन कर दिया।