वर्णीजी-प्रवचन:पुरुषार्थसिद्धिउपाय - श्लोक 79
From जैनकोष
सूक्ष्मो भगवद्धर्मो धर्मार्थ हिंसने न दोषोऽस्ति ।
इति धर्ममुग्धहृदयैर्नं जातु भूत्वा शरीरिणो हिंस्या: ।।79।।
धर्मार्थ हिंसन में दोष नहीं है, इस कुबुद्धि की भर्त्सना―धर्म का आधार अहिंसा है और सम्यक्चारित्र का आधार अहिंसा है । अहिंसा का अर्थ है रागादिक भावों की उत्पत्ति न करना । रागादिक भावों के कारण इस आत्मा के ज्ञानदर्शन प्राण की हिंसा होती है अर्थात ज्ञानदर्शन विशुद्ध परिणमन नहीं कर पाता है । विभाव परिणामों से जो इस अंतस्तत्त्व की हिंसा है वह तो हिंसा हुई और रागादिक भावों के न होने से आत्मा में जो अमित गुणविकास होता है वह सब अहिंसा है ꠰ विभावों का न होना ही अहिंसा है । इस अहिंसा की पुष्टि के लिये प्रवृत्ति करने वाले जीवों का कर्त्तव्य है कि वे ऐसी प्रवृति रखें जिसमें भाव कलुषित न हों, लेकिन धर्म के नाम पर अनेक लोगों ने ऐसी-ऐसी प्रवृत्तियां चलाई हैं कि जिनमें भाव भी कलुषित होते हैं और अनेक जीवों का संहार भी होता है, वह सब धर्म नहीं है ऐसा बताने के लिये अब कुछ गाथाएं कही जायेंगी । प्रथम गाथा में यह बताया है कि कुछ लोग ऐसा कहते हैं कि भगवान् का धर्म तो अतिसूक्ष्म है उस धर्म के लिये हिंसा करने में दोष नहीं है । सो कुछ लोगों का हृदय धर्म मुग्ध है, अंधविश्वास में है और वे धर्म के नाम पर हिंसा करते हैं । उन्हें समझाया गया है कि इस तरह धर्मविमूढ़ मत हो, अंधविश्वासी न बनो । हिंसा हिंसा ही है, चाहे धर्म का ख्याल करके भी करे वह भी हिंसा हिंसा ही है बल्कि धर्म के नाम पर हिंसा करने में विशेष पाप का बंध होता है, क्योंकि अज्ञान से वासित चित्त अधिक है इस कारण हे शांति के इच्छुक पुरुष ! धर्म के लिये भी प्राणियों की हिंसा न करना चाहिये । जैसे एक रिवाज चल उठा है गांजा तंबाकू पीने का । भगवान का नाम लें और अगवान का नाम लेकर कुछ दोहा भी बना डालते हैं शंकर हरिहर नाम लेकर । तो जैसे उन्होंने यह दृष्टि बना ली है दूसरे लोगों में बुरा न कहलवाने के लिये शंकर के नाम पर, शिव के नाम पर गांजा, तंबाकू आदि पीते रहते हैं, ऐसे ही कुछ लोग ऐसे हैं कि वे धर्म के नाम पर हिंसा करते हैं । हिंसा हिंसा ही है । जहाँ परिणामों में रागद्वेष आया, विकल्पों की होड़ मची वहां हिंसा ही है । हिंसा जीव खुद खुद की करता है दूसरे की क्या हिंसा करे? एक द्रव्य दूसरे द्रव्य का परिणमन तो नहीं करता, तो हिंसारूप जो परिणाम है वह भी किसमें किया उस हिंसक ने? अपने आप में हिंसा का परिणाम किया और अपने आपकी हिंसा की । धर्म के लिये भी प्राणियों की हिंसा न करना चाहिये ।