वर्णीजी-प्रवचन:शीलपाहुड - गाथा 7
From जैनकोष
णाणं णाऊण णरा केई विसयाइभावसंसत्ता ।
हिंडंति चादुरगदिं विसएसु विमोहिया मूढा ।।7।।
(14) विषयविमोहित पुरुषों का चतुर्गतिहिंडन―कितने ही पुरुष जिनको कि स्व और परतत्त्व का ज्ञान नहीं है वे ऊपरी बाहरी ज्ञान को जानकर भी विषयरूप भाव में आसक्त होते संते चतुर्गति में भ्रमण करते रहते हैं । खुद खुद का परिचय कर ले यह स्थिति जिसने पायी है वह पुरुष उत्कृष्ट पुरुष है । उसने सर्व समस्याओं का हल कर लिया जिसने अपने सहज स्वरूप का परिचय पा लिया और जिसको सर्व परपदार्थों से भिन्न ज्ञानमात्र आत्मतत्त्व का परिचय नहीं है वह पुरुष इस स्थिति को नहीं पा सकता कि जहाँ सहज आनंद का अनुभव हो सके । सो वह तो निकृष्ट है ही कि जिसके मिथ्यात्व भी है और विषयों में आसक्ति भी है, लेकिन अनेक पुरुष ज्ञान को जानकर भी विषयों के भाव में आसक्त रहते हैं तो वे चतुर्गति रूप संसार में परिभ्रमण करते रहते हैं । तो जो विषयों में मुग्ध बुद्धि वाले जन हैं वे विषयों में आसक्त होकर संसार में परिभ्रमण करते रहते हैं ।