संसार महा अघसागर में
From जैनकोष
संसार महा अघसागर में, वह मूढ़ महा दु:ख भरता है ।
जड़ नश्वर भोग समझ अपने, जो पर में ममता करता है ।
बिन ज्ञान जिया तो जीना क्या, बिन ज्ञान जिया तो जीना क्या ।
पुण्य उदय नर जन्म मिला शुभ, व्यर्थ गमों फल लीना क्या ।।टेक ।।
कष्ट पड़ा है जो जो उठाना, लाख चौरासी में गोते खाना ।
भूल गया तूं किस मस्ती में उस दिन था प्रण कीना क्या ।।१ ।।
बचपन बीता बीती जवानी, सर पर छाई मौत डरानी ।।
ये कंचन सी काया खोकर, बांधा है गाँठ नगीना क्या ।।२ ।।
दिखते जो जग भोग रंगीले, ऊपर मीठे हैं जहरीले ।
भव भय कारण नर्क निशानी, है तूने चित दीना क्या ।।३ ।।
अंतर आतम अनुभव करले, भेद विज्ञान सुधा घट भरले ।
अक्षय पद `सौभाग्य' मिलेगा, पुनि पुनि मरना जीना क्या ।।४ ।।