स्वामी तेरा मुखड़ा है मन को लुभाना
From जैनकोष
स्वामी तेरा मुखड़ा है मन को लुभाना,
स्वामी तेरा गौरव है मन को डुलाना ।
देखा ना ऐसा सुहाना-२ ।।स्वामी ।।टेर ।।
ये छवि ये तप त्याग जगत का, भाव जगाता आतम बल का ।
हरता है नरकों का जाना-२ ।।स्वामी ।।१ ।।
जो पथ तूने है अपनाया, वो मन मेरे भी अति भाया ।
पाऊँ मैं तुम पद लुभाना-२ ।।स्वामी ।।२ ।।
पंचम गति का मैं वर चाहूँ, जीवन का ``सौभाग्य दिपाऊँ ।
गूँजे हैं अंतर तराना-२ ।।स्वामी ।।३ ।।