हम तो कबहुँ न निजगुन भाये
From जैनकोष
हम तो कबहुँ न निजगुन भाये ।
तन निज मान जान तनदुखसुख में बिलखे हरखाये ।।हम तो. ।।
तनको गरन मरन लखि तनको, धरन मान हम जाये ।
या भ्रम भौंर परे भवजल चिर, चहुँगति विपत लहाये।।१ ।।हम तो. ।।
दरशबोधव्रतसुधा न चाख्यौ, विविध विषय-विष खाये ।
सुगुरु दयाल सीख दइ पुनि पुनि, सुनि, सुनि उर नहि लाये।।२ ।।हम तो. ।।
बहिरातमता तजी न अन्तर-दृष्टि न ह्वै निज ध्याये ।
धाम-काम-धन-रामाकी नित, आश-हुताश जलाये।।३ ।।हम तो. ।।
अचल अनूप शुद्ध चिद्रूपी, सब सुखमय मुनि गाये ।
`दौल' चिदानंद स्वगुन मगन जे, ते जिय सुखिया थाये।।४ ।।हम तो. ।।