हो भैया मोरे! कहु कैसे सुख होय
From जैनकोष
हो भैया मोरे! कहु कैसे सुख होय
लीन कषाय अधीन विषयके, धरम करै नहिं कोय।।हो भैया. ।।
पाप उदय लखि रोवत भोंदू!, पाप तजै नहिं सोय ।
स्वान-वान ज्यों पाहन सूंघै, सिंह हनै रिपु जोय ।।हो भैया. ।।१ ।।
धरम करत सुख दुख अघसेती, जानत हैं सब लोय ।
कर दीपक लै कूप परत है, दुख पैहै भव दोय ।।हो भैया. ।।२ ।।
कुगुरु कुदेव कुधर्म लुभायो, देव धरम गुरु खोय ।
उलट चाल तजि अब सुलटै जो, `द्यानत' तिरै जग-तोय ।।हो भैया. ।।३ ।।